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सफाई की पढ़ाई और पढ़ाई से सफाई

शहर की सफाई को लेकर बच्चों के जो सवाल हैं उसके लिए अब बड़ोंको तैयार रहना चाहिए। हमारे कल के ये नागरिक कुछ नए और तल्ख़सवालों को लेकर नेताओं और प्रशासकों से पूछने वाले हैं। इन बच्चों केदिमाग़ में सिर्फ वही नहीं चल रहा है जो विज्ञापनों के ज़रिये बताया जारहा है बल्कि वे विज्ञापनों से आगे जाकर सोच रहे हैं।

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शहर की सफाई को लेकर बच्चों के जो सवाल हैं उसके लिए अब बड़ोंको तैयार रहना चाहिए। हमारे कल के ये नागरिक कुछ नए और तल्ख़सवालों को लेकर नेताओं और प्रशासकों से पूछने वाले हैं। इन बच्चों केदिमाग़ में सिर्फ वही नहीं चल रहा है जो विज्ञापनों के ज़रिये बताया जारहा है बल्कि वे विज्ञापनों से आगे जाकर सोच रहे हैं। सरकार औरनगरपालिका के काम को गहराई से देख रहे हैं। हम बनेगा स्वच्छ इंडियाके लिए जुहू के गांधी शिक्षण संस्था में अमिताभ बच्चन के साथ शूटिंगकर रहे थे। बच्चों को स्वच्छता का पाठ पढ़ाने के लिए हमारी टीम नेस्वच्छता की पाठशाला लगाई थी। इस पाठशाला में अमिताभ बच्चनस्वच्छता का मास्टर बनकर बच्चों को पढ़ाने गए थे। सातवीं से लेकरनौवीं दसवीं के छात्रों को बच्चन साहब ने पढ़ाया लेकिन उससे कहींज़्यादा बच्चों ने हम दोनों को पढ़ा दिया।

हमारे बच्चे स्वच्छता के सवाल को लेकर गंभीर हैं। वे हमारी कथनी औरकरनी में फर्क देख रहे हैं। बच्चे अमिताभ बच्चन की मौजूदगी सेप्रभावित तो थे मगर वे अपने सवालों से किसी प्रकार का समझौताकरने को तैयार नहीं थे। साफ साफ पूछ रहे थे कि हम कब ऐसा करेंगे।हम क्यों ऐसा नहीं करते हैं। क्या हमारा देश स्वच्छ बन पाएगा।अमिताभ बच्चन और बच्चों के बीच उम्र का फ़ासला तो था ही, स्टारडमके बाद भी ये बच्चे अपने सवालों को लिए झट से उनसे भिड़ जा रहे थे।एक बच्चे को छोड़ किसी ने भी उनकी फिल्म के बारे में नहीं पूछा।किसी ने भी उनके डायलॉग के बारे में नहीं पूछा। सब स्वच्छता केमास्टर बने अमिताभ बच्चन से स्वच्छता के ही सवाल कर रहे थे। येहमारी नई पीढ़ी है। जो इस बात से प्रभावित नहीं लगती कि सामनेवाला कौन है।

अमिताभ बच्चन भी शांति और धीरज से एक एक कर सवालों केजवाब दिये जा रहे थे। घंटे भर तेज़ रौशनी की गर्मी झेलते हुए बता रहेथे कि मैं अपने घर में सफाई के लिए ये करता हूं, लाल बत्ती पर ईंजनबंद कर देता हूं। बच्चन साहब भी उस मास्टर की तरह लग रहे थे जिसनेछात्रों की कई पीढ़ियों को पढ़ाया हो। मास्टरी से ज़्यादा पितृभाव ज़्यादाझलक रहा था। थोड़ा हंसाया तो थोड़ा गंभीर भी हुए। अपनी ग़लती भीमानी और नए सुझावों का स्वागत भी किया। एक अच्छे मास्टर का गुणहोता है समय पर आना। साढ़े दस का समय दिया था बच्चन साहब ने।ठीक समय पर आए। गांधी शिक्षण संस्था के शिक्षकों को भी किसीस्टार का घंटों इंतज़ार नहीं करना पड़ा। उन्होंने भी देखा कि समय परआए और समय पर चले गए।

स्वच्छता की पाठशाला आप देखियेगा ज़रूरत। इसलिए देखियेगा किआपके बच्चे कितने होशियार हो गए हैं। नेताओं को इसलिए देखनाचाहिए कि इन बच्चों को हल्के में न ले। जो कहें वो करके दिखायें।करते हुए सही काम करें क्योंकि इन्हें पता है कि सफाई के मामले मेंक्या ग़लत हो रहा है और क्या नहीं हो रहा है। मुंबई से लौट कर यहीसोच रहा हूं कि पर्यावरण सफाई और प्रदूषण को लेकर मीडिया सेलेकर स्कूलों तक में जो कुछ पढ़ाया या बताया गया है वो एकदम सेबेकार नहीं गया है। बच्चों को इन सब मामलों में सवाल करना आ गयाहै। उम्मीद है किसी दिन हमारे देश की राजनीति इन्हीं सवालों पर एकदूसरे से टकरा रही होगी। स्वच्छता अभियान की सफलता की एकमज़िल वह भी होगी। आप जल्दी ही इसी हफ्ते स्वच्छता की पाठशालाएनडीटीवी इंडिया, एनडीटीवी प्राइम पर देखने वाले हैं।

About the Author: Ravish Kumar is Senior Executive Editor, NDTV India

Disclaimer: The opinions expressed within this article are the personal opinions of the author. The facts and opinions appearing in the article do not reflect the views of NDTV and NDTV does not assume any responsibility or liability for the same.

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